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रंग-ए-वतन में रंग जाउंगा

  • Writer: Moutjza Club
    Moutjza Club
  • Jul 26, 2020
  • 2 min read

Written By Sachin Korla

रंग-ए-वतन में रंग जाऊंगा,

भारत माँ का सहासी सपूत कहलाऊंगा।


बच्चपन से देखा था मेने इक सपना,

तब से वतन-ए-रक्षा का इरादा था अपना।

सपना ऐसा कि सर पर जंनून संवार था,

विना देखे जैसे मानो मेरा जीना दुश्वार था।


मेहनत करता और पसीना बहाता था रोज,

प्रतिदिन खुद की प्रतिभाओं की करता था खोज।


बस प्रतिदिन एक ही धुन दोराहता था कि

रंग-ए-वतन में रंग जाऊंगा,

भारत माँ का सहासी सपूत कहलाऊंगा।


वो लम्हा था मेरी जिंदगी का सबसे खास,

जब मेरी मंजिल थी मेरे बिल्कुल पास।


सपने को पूरा करने वाली परीक्षाओं का दौर गुज़र गया था,

परिणाम की घड़ी आने के इंतज़ार में जैसे मानो समय थम सा गया था।


इंतज़ार के पलों में भी बस प्रतिदिन एक ही धुन दोराहता था कि

रंग-ए-वतन में रंग जाऊंगा,

भारत माँ का सहासी सपूत कहलाऊंगा।


कुछ दिन गुज़र जाने के बाद घर के दरवाजे पर इक दस्तक हुई थी,

खाकी बर्दी में झोला लटकाये हुए डाकिये से मुलाकात हुई थी।


जैसे मानो डाकिये की चिठी से मेरा चेहरा खिल सा गया हो,

मुझे अपना सपना मिल सा गया हो।

उस चिट्ठी में शुभकामनाओ का संदेश था,

अगले हफ्ते सरहद पर तैनाती का आदेश था।


कढ़े प्रशिक्षण के बाद सेना की बर्दी का था खूबसूरत सा अहसास,

आंखों से आंशु छलक गए जब पूरी हुई मेरे दिल की आस।


सपना पूरा होने के बाद भी प्रतिदिन एक ही धुन दोराहता था कि

रंग-ए-वतन में रंग जाऊंगा,

भारत माँ का साहसी सपूत कहलाऊंगा।



1998-99 के सर्द हवाओं बाले मौसम का दौर था,

पाक-दुश्मनो के लाइन-आफ-कंट्रोल पार करके भारत आजाने का शोर था।


परिस्थितियां भी खराब और मौसम भी खराब था,

पर हमारा होंसला कभी डगमगाया नही था।


26-07-1999 का वो दिन था,

चारों तरफ गोलियां और सर्द तेज़ हवाओं का शोर था,

पर हम भारतीय सैनिकों पर किसका जोर था।


इन कारगिल युद्ध के दिनों में भी प्रतिदिन एक ही धुन दोराहता था कि

रंग-ए-वतन में रंग जाऊंगा,

भारत माँ का सहासी सपूत कहलाऊंगा।


अपने यूँ साथियों को आंखों के सामने मरता देखकर,

दिल पर पत्थर रखकर,

अपना लहू चखकर,

भारत माँ की कसम खाकर,

बिन डरे चटान के पीछे से सामने आकर,

दुश्मनो को गोलियों से भुना जाकर।


खुदको भी एक गोली लगी पर मै एक है धुन पे टीका रहा था,

रंग-ए-वतन में रंग जाऊंगा,

भारत माँ का सहासी सपूत कहलाऊंगा।


मैं अकेला था वो थे आठ,

पर उनके लिए मैं अकेला ही था बराबर-ए-साठ।


चार गोलियां लगने के बाद भी मैंने हार नही मानी,

और उन आठों को भी पड़ी बुरी मात खानी।


मेरा अंग-अंग लहू से लथपथ था,

पर मैने कारगिल पर तिरंगा लहराया था,

हम भारत माँ के सपूतों ने फिर भारत माता को जिताया था।


हमने पाकिस्तान को बुरी तरह युद्ध में हराकर,

कारगिल पर भारत माँ का तिरंगा लहराया था।

"दिल मांगे मोर" का नारा भी लगाया था।


उसके कुछ ही पलों बाद सर पर जो बचपन से धुन सवार थी,

वो धुन, मेरी सांसे भारत माँ पर न्योछावर होने के साथ पूरी हो गयी थी।



जीत-ए-जशन के बाद, जो धुन सवार थी वो पूरी हुई,


रंग-ए-वतन में रंग गया,

भारत माँ का सहासी सपूत कहला गया।


जय हिन्द।


- सचिन कोरला

1 commentaire


Sachin Korla Pandit
Sachin Korla Pandit
26 juil. 2020

Thank-you moutjza Family for your support...💖

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